धन तेरस का भ्रम

धन तेरस, Dhan Teras, Deepawali, दीपावली
अमात्य परिषद: आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि “धन तेरस” के त्योहार में “धन” का अर्थ पैसे से से नहीं बल्कि आपके “स्वास्थ्य” से हैं ।  क्योंकि इस दिन धन का अर्थ भगवान धन्वंतरि से होता है । जबकि धन तेरस के दिन हिन्दू समाज की यह धारणा बन गई है कि इस दिन धन बटोरना चाहिए । इस लालच में हिन्दू समाज बर्तन खरीदता है, सोना चांदी खरीदता है । यह जाने बिना कि “धन तेरस” में “धन” किसे कहा गया है ?

धन तेरस में जो धन है वो “धन”, “पैसा या संपत्ति” नहीं बल्कि वह “धन” आपका स्वास्थ्य है इस त्यौहार में “धन” आयुर्वेद के देवता  “भगवान धन्वंतरि” हैं।

शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी को भगवान धन्वंतरि समुन्द्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।

“इसलिए इस त्यौहार का अर्थ धन व्यय करने से नहीं, बीमारियों पर व्यय होने वाले धन को बचाने से है ।” और इसी कारण भारत सरकार ने भी इस तिथि को “आयुर्वेद दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया है ।

      भारतीय हिन्दू अर्थ दृष्टि सदैव वैश्विक कल्याण की रही है जबकि अन्यों ने सदैव स्वकल्याण को देखा है । एक ब्रिटिश “God Grace to Britain” कहता है, एक अमेरिकन “God Grace to America” कहता है किन्तु भारत “धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो” कहता है।

Bhartiya Hindu Economic Face
      ऋषियों ने यह दिन को समाज के स्वास्थ्य को समर्पित किया था किंतु लोभी समाज जिज्ञासु नहीं होता और एक-दूसरे की देखा देखी आचरण करने लगता है और इसी कारण पतन का ग्रास बन जाता है । शीतकाल मे शरीर में रक्त संचार धीमा हो जाता है और कफ दोष भी बढ़ने लगता है इसीलिए वृद्धजन के लिए शीतकाल प्रतिकूल होता है । इस दिन से होली तक “त्रिफला” जिसे आयुर्वेद में अमृत भी कहा गया है का सेवन प्रारंभ करना चाहिए । क्योंकि शीतकाल में वात, पित्त और कफ असंतुलित हो जाते हैं और त्रिफला इनको संतुलित करके रखता है।

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